किसी ने मुझसे पूछा था “क्या कायस्थ समाज के अच्छे दिन आ गए”? मैंने उन्हे एक प्रसिद्ध लेखक की लेख की याद दिलाते हुये कहा कि बंधु, अच्छे दिन आते नहीं, लाये जाते हैं”
उदाहरण स्वरूप एक प्रसिद्ध लेखक की एक कहानी के नायक- दो कचनार के वृक्षों ने अपने लिए अच्छे दिन यानि वसंत लाये थे ।
एक सी उर्वर भूमि, पानी, हवा, धूप के साथ एक ही तरह के खाद (भोजन), रसोइया अर्थात माली की देख- भाल परंतु विकास अलग-अलग । एक ने उचित समय पर वसंत के फूलों से लक-दक, खूबसूरत एवं स्वस्थ तना, डालियों –पत्तों के मालिक तथा झूमता- इठलाता एवं इतराती जवानी का प्रतीक तो दूसरा मरियल सा, उमंगों से दूर, वसंत से विरत असहाय सा खड़ा कचनार ?
इस कहानी मे लेखक ने सिद्ध कर दिखाया था कि “वसंत आता नहीं, लाया जाता है।“
अतः “अच्छे दिन” की उम्मीदे पाले बैठे हमारे भाई, नींद से जागो और अपने विकास, आवश्यकता, और त्रुटियों को खुद दूर करो। अपना राह खुद प्रशस्त करो। देखोगे कि थोड़ी सी परिश्रम, थोड़ा विवेक और संघर्ष करने की क्षमता ने आपके "अच्छे दिन" ला दिये हैं।
- महथा ब्रज भूषण सिन्हा