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अम्बष्ठ कायस्थ का इतिहास

अम्बष्ठ कायस्थ का इतिहास

अम्बस्थ कायस्थ परिवार किस रास्ते, मगध क्षेत्र में आये?

अम्बा-कुटुम्बा (प्रथम भाग)

इतना तो निर्विवाद है कि अम्बस्थ कायस्थ परिवार मगध क्षेत्र में, चाणक्य के परामर्श पर चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा लाये गये थे। परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि वे किस रास्ते से, नवादा जिला में अकबरपुर ब्लाक से लेकर नालन्दा जिला में हरनौत ब्लाक, इन दोनों ब्लाकों के अन्दर और इन दोनों ब्लाकों के बीच में अवस्थित गांवों तक पहुंचे? और कैसे पहुंचे? इसका सही उत्तर आगे वर्णित तथ्यों के आधार पर स्वतः स्पष्ट हो जाता है।

कुछ लोगों का मत है कि ये अम्बस्थ परिवार उसी रास्ते से आयें होगें जिस रास्ते से बख्तियार खिलजी मगध में आकर भारी तबाही मचाई। परन्तु खिलजी के आने के हजारो वर्ष पहले से ही अम्बस्थ परिवार मगध में आकर बस चुके थे। जब वे मगध में आये थे, तब उस समय धनानन्द का साम्राज्य था। मगध का गुप्तचर तंत्र तथा उसकी सेना अत्यन्त चुस्त-दुरुस्त, क्रूर और बलशाली थी। अतः उस समय अम्बस्थ परिवारों को गंगा के मैदानी इलाके से, मगध में प्रवेश करना उचित नहीं था। यदि वे इस सुगम मार्ग से आते तो निश्चय ही धनानन्द के सैनिकों द्वारा मारे जाते। आचार्य चाणक्य दूरदर्शी, अनुभवी और मगध के चप्पे-चप्पे को जानते-पहचानते थे। अतः वह गंगा के मैदानी इलाके के रास्ते से मगध जाने की स्वीकृति कदापि नहीं दिया होगा। अम्बस्थ परिवारों को मगध तक पहुचाने के लिए उन्होंने अन्य वैकल्पित रास्ता पहले से ही खोज लिया था।

जिस वैकल्पित रास्ते का आचार्य चाणक्य ने चयन किया, वह रास्ता आज राष्ट्रीय मार्ग का स्वरुप ले चुका है। यह रास्ता पहाड़ों-जंगलों के बीच से तब निकलता था। उनके लिए रास्ते में ठहरने की समुचित व्यवस्था भी की गयी होगी। मार्ग चयन कुछ ऐसा था कि धनानन्द को इसकी भनक भी ना लग सके। मगध में प्रवेश स्थल के चयन के साथ साथ उनकी सुरक्षा का भी समुचित व्यवस्था की गयी थी।

यह स्थल किंवा मगध का प्रवेश द्वार, वह है जो वर्तमान मगध का अन्तिम दक्षिण-पश्चिम छोर है जो विन्ध्य पर्वत श्रृंखला से जोडता है और इस स्थल के समीप किसी ना किसी सशक्त राज-पुरुष की उपस्थिति थी और वह राज-पुरुष आचार्य चाणक्य का शिष्य और चन्द्रगुप्त मौर्य का सहपाठी शशांक था। वह स्थल, अम्बस्थ परिवारों के लिए मगध का प्रवेश-द्वार का नाम अम्बा-कुटुम्बा का क्षेत्र ही है। यह स्थल शशांक के संरक्षण में था तथा शशांक का सम्बन्ध रोहतास किले से था। फिलहाल अम्बस्थ परिवारों द्वारा अपनाये गये सम्भावित मार्गों पर चर्चा अग्रिम पंक्तियों में करेंगे।

सम्भावित सुरक्षित मार्ग


जैसा कि मान्यता है कि चन्द्रभागा (वर्तमान चेनाब) नदी और ऐरावत( रावी) नदी के बीच अम्बस्थों का राज्य था जिसे अम्बस्थ (Ambast) के नाम से जाना जाता था। इसी राज्य से अम्बस्थ परिवार मगध की ओर निकल पडे थे। कुछ का मानना है कि मगध में अम्बस्थ परिवार तक्षशिला से आये थे। जो भी हो हम यह मानकर चलते हैं कि अम्ब स्थान के निकट झिरी (जम्मू-काश्मीर) नामक स्थान से सिधी (मध्यप्रदेश के रीवा के पास) नामक स्थान तक की यात्रा की। झिरी से सिधी तक की दूरी 1563 किलोमीटर है। इस रास्ते में पडने वाले स्थानों का नाम अग्रिम पंक्तियों में स्पष्ट किया जा रहा है जो इस प्रकार है--झिरी, उधमपुर, कठुआ, पठानकोट, होशियारपुर, रुपनगर, अम्बाला, करनाल, पानीपत, दिल्ली, फरीदाबाद, पलवल, आगरा, धौलपुर, ग्वालियर, झांसी, छतरपुर, सतना, गोविन्दपुर और सिधी। इस मार्ग पर अनेक छोटे बडे राज्य थे जिनसे आचार्य चाणक्य को सहयोग की अपेक्षा थी। अम्बस्थ परिवार एक-एक कर सिधी पहुंचकर सोन नदी जलमार्ग से रोहतास पर्वत के सामने, सोन नदी के पूर्वी तट, नबीनगर के पास पहुंच गये। सोन नदी के पूर्वी तट पर, जिस स्थान पर अम्बस्थ परिवार एक-एक कर पहुंचे उसी के बगल में अम्बस्थों के दो मूल गांव धुंधुआ और कसौटिआ है। इसके पास ही एक अन्य मूल गांव जयपुर है और इस मूल गांव के अम्बस्थ परिवार जयपुरियार कहलाते हैं। इस खासघर को उनके कार्यभार अनुसार जयपुरियार, महथा जयपुरियार, गजरे जयपुरियार, जयपुरियार कोतवाल, जयपुरियार भंडारी और जयपुरियार राउत भी कहे जाते थे। ये सभी मूल गांव नबीनगर ब्लाक कुटुम्बा तहसील औरंगाबाद जिले के अन्तर्गत है।

                                                                                                                                               लेखक  श्री अंजनी कुमार वरिष्ठ एवं विभिन्न सरकारी पदों  पर मुख्य अभियंता  रह चुके हैं।  कायस्थ इतिहास मे इनकी विशेष रुचि है  शोध कर्ता हैं एवं प्रमाणित तथ्य रखने के लिए जाने जाते हैं।