अम्बा-कुटुंबा (द्वितीय भाग)
सर्वप्रथम औरंगाबाद जिले के अन्दर कुटुम्बा तहसील का भौगोलिक स्तिथि के विषय पर चर्चा की जायेगी। छोटानागपुर पठार के अन्तिम छोर के साथ ही कुटुम्बा तहसील का सीमा प्रारम्भ होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जायेगा कि कुटुम्बा तहसील के दक्षिण में पलामू जिला है और पश्चिम में कैमूर जिला है, बीच में सोन नदी दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर में बहती है। कुटुम्बा से पश्चिम में, सोन नदी के पश्चिमी तट पर रोहतास की पहाड़ी जो विन्ध्य पर्वत श्रृंखला का विस्तार का एक हिस्सा है। इसे कैमूर की पहाड़ियों के नाम से भी जाना और समझा जाता है।
अम्बस्थ परिवार सिधी से रोहतास की पहाड़ी तक, सोन नदी जलमार्ग से आये थे। इस सोन नदी का उद्गम मैकाल के पर्वत पर स्थित अमरकण्टक स्थान है। इसे विन्ध्य पर्वत तथा सतपुड़ा पर्वत का आलम्ब (fulcrum) स्थल भी कहा जाता है। सोन नदी जब कैमूर की पहाड़ियों के पास पहुंचती है तब इसकी प्रवाह की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर हो जाती है और कैमूर की पहाड़ियों के साथ-साथ बहती रहती है। अकबरपुर गांव के पास इस पर्वत श्रेणी का अन्त हो जाता है। अम्बस्थ परिवारों का गन्तब्य स्थान कुटुम्बा (अकबरपुर के समीप) सोन नदी के पूर्वी तट से 24 किलोमीटर की दूरी पर पूरब में है। सिधी से अकबरपुर तक, सोन नदी के दोनों किनारे का भू-भाग वनाच्छादित था जहां की आबादी नहीं के बराबर था। ऐसे में सिधी से रोहतास की पहाड़ी तक की जलमार्ग की यात्रा अत्यन्त गोपनीय रही और मगध सम्राट धनानन्द को इस यात्रा की भनक तक नहीं लगी थी।
कुटुम्बा-नबीनगर के समीप छोटानागपुर पठार से पुनपुन नदी निकलती है जो उत्तर-पूर्वोत्तर दिशा में बहती हुई फतुहा (पटना) के समीप गंगा नदी में मिल जाती है। यह पुनपुन नदी सिरिस, जम्होर, ओबरा-खरांटी, खुदवां सूर्य मंदिर, खैरा-गोह के मध्य भृगु मंदिर के पास से बहती हुई फतुहा चली जाती है। अम्बस्थ खासघर से इंगित होने वाले गांव महथा, सकरदिहा, भरथुआ और मंदील के पास से ही यह नदी बहती थी। पटना के सैटेलाइट अम्बस्थ का मूल गांव इसी नदी के इर्दगिर्द हैं। इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि अम्बराज्य से आये अम्बस्थ परिवार कुटुम्बा से ही पुनपुन नदी के किनारे किनारे पाटलिपुत्र पटना तक चले गए थे।
ऐतिहासिक परिदृश्य
कुछ वर्ष पहले चाणक्य नामक धारावाहिक टीवी पर चल रहा था, जिसमें यह बताया गया था कि आचार्य चाणक्य ने अपने शिष्य शंशाक को सबसे पहले मगध क्षेत्र में भेजा था जबकि उन्होंने चन्द्रगुप्त को सिकन्दर की सेना में दाखिल करवा दिया था और स्वयं परोक्षरुप से पोरस की सहायता करने लग गये थे।
खोज करने पर सबसे पुरानी रिकार्ड एक शिलालेख रोहतास किले में मिला है, जिसमें महासामन्त शशांक अंकित है, परन्तु इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि वे किस कालखण्ड के थे और उनका कौन सा राज्य था।
रोहतास का प्रारम्भिक इतिहास बहुत धुंधला अथवा अज्ञात है। स्थानिक लोगों का मानना है कि रोहतास किले का सम्बन्ध पौराणिक कथा में वर्णित राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहतास से है। इस किले के आसपास कुछ गुफाएं भी है जो इस बात का संकेत है कि यह स्थान राजपुरुषों के अधीन रहा है। इस स्थान से पूर्व दिशा में नबीनगर और कुटुम्बा है।
कुटुम्बा के समीप परसा नामक गांव के अन्दर पुरातत्व महत्व का एक बडा टील्हा है जिसकी खुदाई बिहार सरकार द्वारा की जानी है। खुदाई के उपरान्त अम्बस्थ परिवारों के सम्बन्ध कुछ अन्य जानकारियां मिलने की उम्मीद है।
अम्बराज्य और मगध के बीच संयोग या पुष्टि
शोधकार्य से स्पष्ट हो गया है कि अम्बस्थों का मूल गांव, मगध क्षेत्र में ही है जिसके अन्तर्गत पटना, नालन्दा, नवादा, गया, जहानाबाद, अरवल तथा औरंगाबाद जिले आते हैं। पहली बात।
दूसरी बात यह है कि जिन-जिन क्षेत्रों में अम्बस्थों का मूल गांव हैं या थे, वहां सकलद्वीप ब्राह्मण भी पाये जाते रहे हैं। इतिहासकारों के अनुसार सकलद्वीप ब्राह्मण, शाकद्वीप से श्री कृष्ण द्वारा जम्बूद्वीप में लाए गए थे और बिहार में, विशेषतः मगध क्षेत्र में बस गये जहां अम्बस्थों की उपस्थिति थी। यह हिन्दू ब्राह्मणों का ऐसा वर्ग है जिनका नाता मुख्यतः पूजा पाठ, वेद-आयुर्वेद, चिकित्सा, संगीत से रहा है। इन्हें सूर्य के अंश से उत्पन्न होने के कारण सूर्य के समान प्रताप वाला ब्राह्मण माना गया है।
अब तीसरी बात यह है कि जिन क्षेत्रों में अम्बस्थों एवं सकलद्वीप ब्राह्मणों की उपस्थिति थी, उन क्षेत्रों में प्राचीन/पौराणिक सूर्य-मन्दिर भी पाये जाते हैं, जैसे--
देव (औरंगाबाद जिला) स्थित सूर्य मंदिर
यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। यहाँ छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। यहां छठ पर्व कार्तिक मास और चैत्र मास में मनाया जाता है। यहां छठ पर्व मनाने के लिए दूर-दूर से भारी संख्या में लोग आते है तथा इसके साथ ही यहां मेला भी लगता है। देव मंदिर के सारे पुरानी मूर्तियां विखण्डित कर दी गयी थी। भगवान सूर्य की विखण्डित मूर्ति मंदिर के प्रवेश द्वार पर पडा हुआ है। अन्य विखण्डित मूर्तियों को मंदिर के चाहरदीवारी में कलात्मक रुप से चुनवा दिया गया है। मंदिर के गर्भ-गृह में भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां हैं जो उनके सूर्योदय, सूर्य मध्याह्न एवं सूर्यास्त की अवस्था को दर्शाता है।
गया का सूर्य नारायण मंदिर
गया में ब्राह्मणीघाट जो की फल्गु नदी के तट पर है, लगभग 5 फीट ऊंची भगवान सूर्य की विशाल प्रतिमा है जो 9 वी शती ईस्वी की है और अब तक पाए गए सारे सूर्य मंदिरों से भव्य और अखंडित है. इसे वृंचिनारायण के नाम से जाना जाता है। (स्रोत डा अमरजीव लोचन)
यह सूर्य मंदिर, विष्णुपद मंदिर के पास है । यह पूरबमुखी हैं इसलिये शाम का अर्घ्य ही यहाँ पड़ता है । फिर ब्राह्मणी घाट पर भी पूर्वमुखी सूर्यनारायण का मंदिर है , इसलिये सुबह का अर्घ्य फल्गु नदी में पड़ता है । सूर्य भगवान की मूर्ति 5 फीट से अधिक ऊंची नहीं है। मूर्ति काले ग्रेनाइट पत्थर की है और समीप में तालाब भी है । यह मंदिर, विष्णुपद के पहले है तकरीबन 10 कदम पर है, पुराने रास्ते से । (स्रोत बहन उमा सिन्हा)
उलार्क (लोलार्क?) सूर्य मंदिर
उलार नामक गांव, ब्लाक एवं तहसील दुल्हिन बाजार जिला पटना में पडता है। यहाँ की मूर्तियाँ पालकालीन है जो काले पत्थर (ब्लैक स्टोन) से निर्मित हैं। बताते हैं कि मुगलकाल में विदेशी आक्रमणकारियों ने देश के कई प्रमुख मंदिरो के साथ उलार मन्दिर को भी काफी क्षति पहुँचाई थी। बाद में भरतपुर नरेश के वंशजो द्वारा इस पौराणिक मन्दिरो के जीर्णोद्धार की बात कही जाती है। बताते हैं कि संत अलबेला बाबा करीब 1852-1854 के बीच उलार्क आए और जनसहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। खुदाई के दौरान यहाँ शिव, पार्वती, गणेश आदि देवताओं की दर्जनो विखंडित पालकालीन दुर्लभ मूर्तियाँ मिलीं।
औंगार्क सूर्य मन्दिर
इस मंदिर का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया गया था। यह मन्दिर बिहार के नालन्दा जिले के औंगारी नामक स्थान पर स्थित है। एक प्रसिद्ध तालाब के तट पर स्थित यह सूर्य मन्दिर बिहार की कला एवं संस्कृति का परिचायक है। इस मन्दिर की खास विशेषता यह है कि यहाँ मनौती पूर्ण होने की आशा में श्रद्धालु विशेष मुद्रा में भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैं। यह बिहार राज्य के नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड में स्थित है। यहाँ बिहारशरीफ ( नालंदा जिले का मुख्यालय) से 30 किमीटर सड़क मार्ग द्वारा तथा एकंगरसराय से 05 किमीटर सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। इस मंदिर की गर्भ गृह पश्चिममुखी है,जो देश के अन्य सूर्य मंदिरों से इसे विशिष्ट बनाता है।
हंड़िया सूर्य मंदिर
नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के हंड़िया गांव स्थित सूर्य नारायण धाम मंदिर काफी प्राचीन है। यह मंदिर ऐतिहासिक सूर्य मंदिरों में से है जो लोगों की आस्था का प्रतीक बना है। मंदिर के आस-पास की गई खुदाई के समय प्रतीक चिन्ह और पत्थर के बने रथ मार्ग की लिक के अवशेष प्राप्त हुए थे। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध द्वापर युग से रहा होगा। मंदिर के समीप एक तालाब स्थित है। काफी संख्या में लोग प्रत्येक रविवार को तालाब में स्नान करने के पश्चात् मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
बड़गांव नालन्दा
यहां भगवान सूर्य का प्राचीन/पौराणिक मंदिर तथा एक झील है। यहां वर्ष में दो बार छठ पर्व के अवसर पर मेले लगते हैं। एक चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) का छठ पर्व तथा दूसरा कार्तिक मास कि छठ पर्व (अक्टूबर- नवंबर) महीने होता है। इन दोनों महीनों में यहां प्रसिद्ध छठ त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग छठ पर्व की पूजा करने यहांँ आते हैं। यह स्थान, नालंदा खण्डहर से 02 दो किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में है।
ये सभी पांच प्राचीन/पौराणिक सूर्य मंदिर मगध क्षेत्र के अन्तर्गत है जिसके आसपास अम्बस्थों के मूल गांव हैं अथवा उनकी अच्छी खासी आबादी रही है।
मार्तंड मंदिर
कश्मीर के दक्षिणी भाग में अनंतनाग से पहलगाम के रास्ते में मार्तण्ड (वर्तमान बिगड़ कर बने मटन Mattan) नामक स्थान पर मार्तंड सूर्य मंदिर है। इस मंदिर परिसर में एक बहुत बड़ा सरोवर भी है, जिसमें मछलियां देखी जा सकती है। इस मन्दिर परिसर का संभावित निर्माण सन् 490-555 ई. के मध्यावधि में किया गया होगा। कालान्तर में, सुल्तान सिकन्दर बुत्शिकन ने इस मन्दिर को तोड डाला था। आज मार्तण्ड मन्दिर समूह के भग्नावशेष है जिसके अन्दर सूर्य मन्दिर, पवित्र जल-स्रोत, सरोवर एवं सुन्दर उद्यान आदि हैं, इसे जम्मू-कश्मीर का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रुप में जाना जाता है। भग्नावशेष की छवि गूगल पर उपलब्ध हैं जिसे हमसब देख सकते हैं।
जैसा हमसब जान चुके हैं कि प्राचीन काल में, चन्द्रभागा (चेनाब) और एरावर्त (रावी) के मध्य अम्ब नामक राज्य था इसका उल्लेख ब्रम्ह पुराण में भी मिलता है। अम्बराज्य के निवासी को ही अम्बस्थ कहा जाता है। अम्भ/झिरी स्थान जो चेनाब नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, वहां से चेनाब नदी के पूर्वी तट के सहारे नदी-प्रवाह के विपरीत दिशा में यदि हम चलते जायेंगे तो मार्तण्ड सूर्य मन्दिर के क्षेत्र के निकट पहुंच जायेगें। यह मार्तण्ड मन्दिर आचाबल और पहलगाम के मध्य स्तिथ है तथा यह स्थान सड़क मार्ग से, अम्ब (झिरी) से 224 किलोमीटर उत्तर दिशा में, जो प्राचीन अम्बराज्य के अन्तर्गत आता था।
उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्य अनुसार, मार्तण्ड मन्दिर का निर्माण सूर्य राजवंश के राजा ललितादित्य ने एक छोटे से शहर अनंतनाग के पास एक पठार के उपर किया था। इसकी गणना ललितादित्य के प्रमुख कार्यों में की जाती है। इसमें 84 स्तंभ हैं जो नियमित अंतराल पर रखे गए हैं।
इस मंदिर को बनाने के लिए चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों का उपयोग किया गया है जो उस समय के कलाकारों की कुशलता को दर्शाता है। इस मंदिर की राजसी वास्तुकला इसे अलग बनाती है। बर्फ से ढंके हुए पहाड़ों की पृष्ठभूमि के साथ, केंद्र में यह सूर्य मंदिर इस स्थान का करिश्मा ही कहा जाता है। इस मंदिर परिसर से कश्मीर घाटी का मनोरम दृश्य भी देखा जा सकता है।
आज मार्तण्ड मन्दिर समूह का क्षेत्र भग्नावशेष के रुप में विद्यमान है। कश्मीर का यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भग्नावशेष है। पूर्व भारत में पाये जाने वाले अन्य प्राचीन/पौराणिक सूर्य मन्दिरों के साथ, यह मार्तण्ड सूर्य मन्दिर अद्भुत समानता का परिचय देता है। इस मार्तण्ड सूर्य मन्दिर को देवार्क (देव), औंगार्क (औंगारी), लोलार्क या उलार्क (उलार), गया, हंडिया तथा बडगांव सूर्य मन्दिरों से जोडकर देखा जा सकता है। इसे कोणार्क सूर्य मन्दिर से भी जोडकर देखा जाता है।
अम्ब/अम्भ (झिरी) जो चेनाब नदी के पूर्वी तट पर है, वहां से पश्चिमोत्तर दिशा में माण्ड का क्षेत्र है जो मार्तण्ड का अपभ्रंश लगता है। यह स्थान कितना प्राचीन है, इसका उत्तर वर्ष 1976-1977 के मध्य, पुरातत्वविद जे पी जोशी द्वारा उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से स्पष्ट हो जाता है। उत्खनन से सिन्धु घाटी सभ्यता (2350-1750 BCE), मौर्य सम्राज्य काल (322-185 BGE) तथा कुषाण साम्राज्य काल (78-200 CE) के अवशेष मिले हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि सिकन्दर-पोरस युद्ध तथा मौर्य साम्राज्य स्थापत्य काल के पूर्व से ही अम्बराज्य विद्यमान था।
क्या यह संयोग है, पुष्ट संकेत या सबूत इस बात का है कि अम्बराज्य के अम्बस्थ और 18-19 शताब्दी के मगध क्षेत्र के अम्बस्थ दोनों ही श्री चित्रगुप्तजी महाराज के पुत्र हिमवान के ही संतान हैं। इससे यह भी साबित होता है कि प्राचीन काल से ही अम्बस्थों द्वारा सूर्य भगवान की पूजा तथा छठ-पर्व सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ करते आ रहे हैं। इससे इस तथ्य की सम्पुष्टि हो जाती है कि मगध के अम्बस्थ अम्बराज्य से ही आये थे।
लेखक एवं शोध कर्ता श्रीअंजनी कुमार