गौरवशाली एवं समृद्ध इतिहास, प्रसिद्ध व्यक्तित्व एवं प्रतिभाशाली भविष्य

काव्य पाठ

काव्य पाठ

 

 

मेरे मन की कविता 

 

 

 एक कवि सम्मलेन में मुझे बुलाया गया
 और श्रोताओं को कुछ अच्छा सुनाने के लिए फरमाया गया.
 मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे मंच से कुछ सुनाना पड़ेगा.
 और सुधि श्रोताओं से सड़े अंडे-टमाटर खाना पड़ेगा.
 डरते-डरते मैं मंच पर चढ़ा
 और अपनी कविता को कुछ इस तरह पढ़ा.
 मित्रों, मुझे आपसे है कुछ कहना
 थोड़ी देर बाद तो मुझे है, आपके संग ही रहना
 सुनते ही उठ खड़ी हुई एक महिला.
 उनकी चीख से पूरा मंच दहला.
 मुझे मित्र बोला, कोई बात नहीं.
 पर मेरे संग रहने की तुम्हारी औकात नहीं.
 तुम्हारे जैसे लम्पट हमने बहुत देखे हैं.
 बुलाती हूँ योगी पुलिस, पास ही बैठे हैं.
 खैर चाहते हो तो अभी वापस लौट जाओ
 नहीं तो डंडे के साथ साथ, लो सड़े अंडे खाओ.
 इतना सुनते ही मेरी कविता छिटक कर दूर जा गिरी
 बोली, मुझे नहीं पता, कहाँ सीखी थी इतनी बाजीगरी.
 सालों से मुझे भी, हर समय भरमाते रहे
 थी, इतनी दोस्त तो बोलने से क्यों शर्माते रहे?
 अब, मैं तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रह सकती.
 योगी सर को तो मैं कुछ भी नहीं कह सकती.
 मुझे छोड़कर न जाओ मेरी कविता, मै चिल्लाया.
 अब नहीं कहूँगा “मित्र” मंच से, कविता को समझाया.
 बड़ी मुश्किल से मेरा अनुरोध मान गई वो.
 बिना परमिशन मंच पर न चढने की, कड़ी शर्ते डाल गई वो.
 अब जब भी मंच पर जाता हूँ,
पहले कविता को मनाता हूँ.
 “सुधि श्रोताओं” बोल कर अपना काव्य पाठ सुनाता हूँ.

 

-महथा ब्रज भूषण सिन्हा.