मीरा बाई चानू
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मुंशी प्रेमचंद के रचे पांच ऐसे असरदार किरदार जो आज भी प्रासंगिक हैं
प्रेमचंद की लेखनी में तो आकर्षक तत्व हैं हीं लेकिन उन रचनाओं के किरदार भी कम अपनी तरफ नहीं खींचते हैं और हमें उस हकीकत के सामने लाकर खड़ा कर देते हैं जो हूबहू उनकी कहानियों की तरह हमारे भी दैनिक जीवन से होकर गुजरती हैं.
उपन्यासकार और कहानीकार मुंशी प्रेमचंद
समाज को देखने के कई तरीके होते हैं. या तो इसे आर्थिक नज़रिए से या भौगोलिक परिदृश्य से या उसके राजनीतिक झुकाव के मद्देनज़र समझ सकते हैं. लेकिन इससे इतर जाकर जब हम समाज को देखने की कोशिश करते हैं- तो वो सफर मुंशी प्रेमचंद की कहानियों, उपन्यासों और उसके किरदारों से होकर गुज़रता है जिसके केंद्र में होती है- मानवीय संवेदना और उसका परिवेश.
प्रेमचंद की रचनाओं में उनके गढ़े गए किरदारों के जरिए हम अपने आसपास होती हलचल को महसूस कर सकते हैं. समाज को देखने का एक नज़रिया जो प्रेमचंद अपनी रचनाओं से दे गए हैं- वे न जाने कितने ही बेआवाज़ लोगों की आवाज के तौर पर संकलित होकर, हमारे सामने भयावह और मर्मदर्शी हकीकतें पेश करती हैं.
समाज के इन बेआवाज़ों को प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में बखूबी जगह दी है, जिनमें किसान, दलित, महिलाएं, इन सभी से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं. जो वर्तमान में एक अलग विषय बन चुके हैं लेकिन उस समय प्रेमचंद ने इन्हें समग्रता में देखा था.
उनकी रचनाओं की जो एक और खूबसूरती है वो ये है कि हिंदी-उर्दू का कोई भी पाठक जिसका रुझान साहित्य और समाज की तरफ बढ़ रहा है- वो अक्सर सबसे पहले उन्हीं की रचनाओं से बाबस्ता होता है. इसे सच्चाई मान सकते हैं या इत्तेफाक या उनकी लेखनी का चुंबकीय आकर्षण जो सरलता के साथ खींचती जाती है.
प्रेमचंद की समुचित लेखनी में तो आकर्षक तत्व हैं ही लेकिन उन रचनाओं के किरदार भी कम अपनी तरफ नहीं खींचते और हमें उस हकीकत के सामने लाकर खड़ा कर देते हैं जो हूबहू उनकी कहानियों की तरह हमारे भी दैनिक जीवन से होकर गुजरती हैं. ठीक वैसे ही जैसे नमक का दारोगा में वंशीधर और पंडित अलोपीदीन का किरदार, पूस की रात में हल्कू और जबरा, कफन में घीसू और माधव, गोदान में होरी…
तभी तो हिंदी आलोचना के श्लाका पुरुष कहे जाने वाले नामवर सिंह ने प्रेमचंद की रचनाओं के बारे में कहा था- ‘उन्होंने हिंदी साहित्य से मध्यमवर्ग का ध्यान हटाकर आम आदमी, गरीब, देहाती और किसानों को उपन्यासों और कहानियों का विषय बनाय जो अपने आप में क्रांतिकारी कदम था.’
भले ही प्रेमचंद के किरदार तकरीबन सौ बरस पहले गढ़े गए हों लेकिन इस दौरान ये बिल्कुल भी फीके और कमज़ोर नहीं पड़े हैं बल्कि और भी सशक्त होकर हमसे सवाल करते हैं- आखिर इतने बरसों में क्या बदला?
बनारस के नज़दीक लमही गांव में 31 जुलाई 1880 को धनपत राय श्रीवास्तव का जन्म हुआ था जिन्हें बाद में मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाने लगा.