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संताप कवि हृदय का

संताप कवि हृदय का  

लिखता तो मैं भी हूँ, पर पढ़ता कौन है?  

अगर पढ़ भी ले तो, समझता कौन हैं।

नहीं चाहिए वाह-वाह, नहीं चाहिए तालियाँ

दो इतना दान कि बचे जान और मिले थालियां।

रुँधे गले से कौन गाए, मंचो से सुरीले गान

मन डोल रहा है, क्या हो महामारी का समाधान।

घर मे रहो, मास्क लगाओ, पर जा रही जान।

आगे क्या होगा? जब पंक्ति मे जाने लगे श्मशान।

बहुतों  को खोया, अनाथों की गिनती नहीं आसान।

हे प्रभों, उजड़ रहे चमन तुम्हारी आकर करो कल्याण।

श्रद्धांजली समस्त जन को, जो रहे नाम-अनाम।  

आर्त हृदय से सबको अश्रुपूरित कवि प्रणाम॥     

-महथा ब्रज भूषण सिन्हा,

राष्ट्रीय अध्यक्ष,

अखिल भारतीय कायस्थ संगठन।

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