आज भी इस आधुनिक युग में 40 से 50% महिलाएं हैं जो शिक्षित होने पर भी घर पर ही बैठे हैं। यानी कि देश का आधा ज्ञान घर पर ही बैठे बैठे बेकार हो रहा है। हलाकि घर पर बच्चों की देखभाल या परिवार की देखभाल करना भी जीवन का एक हिस्सा है परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि जीवन वहीं पर सीमित है। महिलाओं को भी पुरुषों की तरह है ऑफिस जाना चाहिए और काम करना चाहिए क्योंकि इससे उनका ज्ञान और बढ़ता है और वह भी देश के लिए कुछ अच्छा कर सकती हैं।
भारत में महिला सशक्तिकरण की कमी एक सबसे बड़ा कारण है कि आज भी भारत विकासशील देशों में गिना जाता है। अगर हमारे देश की महिलाएं सशक्त बने और पुरुषों की तरह है अपने ज्ञान को विश्व के साथ बांटे और घर से बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश भारत भी विकसित देशों की लिस्ट में दिखेगा। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पुरुषों की मदद तथा सरकार द्वारा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई नियम और कानून लाने होंगे।
महिला सशक्तिकरण का नारा इसलिए समाज में उठा क्योंकि हमारे समाज में लिंग भेदभाव आज भी इस आधुनिक युग में हो रहा है जो कि एक बहुत ही शर्म की बात है। आज भी कई जगहों पर गैरकानूनी तरीके से लिंग की जांच करवा कर कन्या भ्रूण हत्या जैसे महापाप हो रहे हैं। बाकी लोग घर में लड़कियों को लड़कों से कम समझ रहे हैं तो कई जगहों पर विवाह के बाद लड़कियों के साथ अत्याचार हो रहा है। अगर हम सही नजरिए से देखेंगे तो पूर्ण रूप से महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है जो नहीं होना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में हर किसी को स्वतंत्र रूप से जीने और जीवन में आगे बढ़ने का हक है।
हमारे रीति रिवाज, पूजा पाठ और परंपरा का सम्मान करना चाहिए परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि पौराणिक कथाओं का गलत मतलब निकाल कर महिलाओं के साथ अत्याचार किया जाए। आज भी हमारे देश भारत में जहां महिलाओं के रूप में माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, काली, की पूजा की जाती है पता नहीं क्यों वहां मां, बहन, बेटी, पत्नी, या किसी महिला मित्र के साथ अन्याय होता है? महिलाओं का सम्मान मात्र कर देने से काम नहीं चलेगा बल्कि हमें अपने समाज की महिलाओं को सशक्त बनाना होगा ताकि वह देश में निडरता के साथ चल पाएं और उन्हें कभी भी एहसास ना होने दिया जाए कि वह पुरुषों से कम है।
रीता सिन्हा , पटना। ...